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Wednesday, January 10, 2018

1700 साल पहले 22 दिसम्बर को क्यों मनाते थे मकर संक्रांति

1700 साल पहले 22 दिसम्बर को क्यों मनाते थे मकर संक्रांति




19वीं सदी में ऐसा अमूमन देखा गया है कि मकर संक्रांति 13 और 14 जनवरी को मनाई गई। पिछले तीन साल से लगातार संक्रांति का यह क्रम जारी था। 












लेकिन साल 2017 और 2018 में संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी।








दरअसल ऐसा खगोलीय घटना के कारण होता है। वर्ष भर हर माह सूर्य बारह राशियों में एक से दूसरी में प्रवेश करता रहता है।













वर्ष की बारह संक्रांतियों में जनवरी यानी माघ माह में आने वाले वाली संक्रांति विशेष होती है। इस समय मकर राशि में प्रवेश करने के कारण यह पर्व मकर संक्रांति व देवदान पर्व के नाम से जाना जाता है।







ज्योतिष मान्यता के अनुसार जिस वर्ष रात्रि में संक्रांति हो तो पुण्य काल दूसरे दिन होता है, उस वर्ष मकर सक्रांति 14 जनवरी को होती है। चूंकि इस वर्ष सूर्य भारतीय समयानुसार 14 जनवरी को आधी रात 1.25 बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा, इसलिये उसका पुण्यकाल 15 जनवरी को ही माना जाता है।













मकर सक्रांति मनाए जाने का यह क्रम हर दो साल के अन्तराल में बदलता रहता है। लीप ईयर वर्ष आने के कारण मकर संक्रांति 2017 व 2018, 2021 में वापस 14 जनवरी को व साल 2019 व 2020 में 15 जनवरी को मनाई जाएगी। यह क्रम 2030 तक चलेगा।











इसके बाद तीन साल 15 जनवरी को व एक साल 14 जनवरी को सक्रांति मनाई जाएगी। 2080 से 15 जनवरी को ही मनाई जाएगी। क्यों होता है ऐसा पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए प्रतिवर्ष 55 विकला या 72 से 90 सालों में एक अंश पीछे रह जाती है। मकर संक्रांति का समय हर 80 से 100 साल में एक आगे बढ़ जाता है।











क्यों होता है ऐसा पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए प्रतिवर्ष 55 विकला या 72 से 90 सालों में एक अंश पीछे रह जाती है। मकर संक्रांति का समय हर 80 से 100 साल में एक आगे बढ़ जाता है।











इससे सूर्य मकर राशि में एक दिन देरी से प्रवेश करता हैं। करीब 1700 साल पहले 22 दिसम्बर को मकर संक्रांति मनाई जाती थी। इसके बाद पृथ्वी के घूमने की गति के चलते यह धीरे-धीरे दिसम्बर के बजाय जनवरी में आ गयी है।









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