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Tuesday, May 8, 2018

दुनिया की पहली गैस से चलने वाली साइकिल, खूबी ऐसी खरीदने को चाहेगा दिल

दुनिया की पहली गैस से चलने वाली साइकिल, खूबी ऐसी खरीदने को चाहेगा दिल



दुनिया में समय-समय पर अनोखे अाविष्कार होते रहते हैं। ऐसा ही कुछ फ्रांस में हुआ है, जो खासी चर्चा बटोर रहा है। दरअसल, यहां दुनिया की पहली गैस से चलने वाली साइकिल का अाविष्कार किया गया है।







आपकी जानकारी के लिए बता दें फ्रेंच की एक स्टार्ट-अप कंपनी 'प्राग्मा इंडस्ट्रीज' ने 'हाइड्रोजन पावर्ड इलेक्ट्रिक' साइकल का निर्माण किया  है।






अगर आपको इसकी मालूम चलेगी तो आपका मन भी यही साइकिल खरीदने को कहेगा। तो आइए जानते हैं क्या है खास...







कंपनी ने इस इलेक्ट्रिक साइकल का नाम 'अल्फा बाइक' रखा है। अल्फा बाइक 2 लीटर हाइड्रोजन में 62 मील यानी तकरीबन 100 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है।






यह रेंज किसी इलेक्ट्रिक बाइक जैसी ही है। हालांकि, इसकी अच्छी बात यह है कि किसी ई-बाइक की तुलना में यह बहुत जल्दी चार्ज हो जाती है।








इतना ही नहीं, एक किलो हाइड्रोजन में एक किलो की लिथियम आयन बैटरी के मुकाबले लगभग 600 गुणा अधिक एनर्जी होती है। इन्हें बनाने वाली कंपनी री-फ्यूलिंग स्टेशंस भी बेचती है जिनके जरिए हाइड्रोजन बनाई जा सकती है।





कंपनी मिलिटरी यूज के लिए फ्यूल सेल्स बनाती है। इसलिए कहा जा रहा है इस साइकिल का निर्माण मिलिटरी यूज के लिए ही किया गया है। वहीं कंज्यूमर मार्केट के लिहाज से ये साइकल्स थोड़ी महंगी है।











दरअसल, एक हाइड्रोजन साइकल की कीमत 7,500 यूरो यानी तकरीबन 6 लाख रुपए है। भारत जैसे देश में तो यह साइकिल आम लोगों की पहुंच से बाहर हो जाएगी








वहीं कंपनी इनकी कीमत पांच हजार यूरो तक घटाने की कोशिश कर रही है। अगर ऐसा हो जाता है तो ये साइकल्स प्रीमियम इलेक्ट्रिक बाइक्स की लाइन में शामिल हो सकेंगी।




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देखिए पूरी दुनिया को चौंकाने वाली दमदार कारें, कोई दागती है मिसाइल तो कोई छोड़ती है आग के गोले

देखिए पूरी दुनिया को चौंकाने वाली दमदार कारें, कोई दागती है मिसाइल तो कोई छोड़ती है आग के गोले



ऐसी कार आपने सिनेमाघर के फिल्मी पर्दे पर या फिर टीवी स्क्रीन पर या किसी फिल्म के पोस्टर में ही देखी होगी। लेकिन दोस्तों आज जो कार कलेक्शन हम आपको दिखाने जा रहे हैं वह बेहद खास है क्योंकि ये आपकी सोच के बिलकुल परे है। जी हां ठीक वैसे ही जैसे किसी एक्शन फिल्म में कोई सुपरकार....









असल दुनिया में ऐसी कार देखकर तो कोई भी भौचक्का रह जाएगा। जी हां, अगर आप इनकी खासियत जान लेंगे तो दांतों तले उंगली दबा लेंगे। 








ऑटोमेटिक कारों से भी एक कदम आगे चलनी वाली इन कारों में कोई हवा में उड़ती है, कोई मिसाइल दागती है तो कोई खतरनाक हथियार बन जाती है। 





क्या आपने कभी सोचा है कि इन कारों के बिना सुपरहीरोज का क्या होता? असल जिंदगी में ये सुपरकारें हमें देखने को मिल सकती हैं चलिए बतातें है आपको इन दिलचस्प कारों के बारे में...





आयरन मैन फिल्म में इस्तेमाल की गई अकूरा 'एनएसएक्स' कार के बारे में आपने सुना नहीं होगा।यह कार पलभर में हवा से बातें करती है।इसी अंदाज में इस कार को फिल्म मे दिखाया गया है।बेहद खूबसूरत दिखने वाली इस कार ने वाकयी फिल्म के कई एक्शन सीन्स में जान डाली है।







रियल लाइफ में तो हम उड़ने वाली कारों के बेहद करीब पहुंच चुके हैं, कई कंपनियां 2019 में इन्हें बाजार में लॉन्च करने की बात भी कर चुकी हैं, यहां तक की कई टैक्सी कंपनियां अपने ग्राहकों को उड़ने वाली कारों की सर्विस प्रोवाइड कराने की बातें कह चुकी हैं। बता दें कि उड़ने वाली कार का कंसेप्ट पहले फिल्मों तक ही सीमित था। एजेंट अॉफ शील्ड नाम की हॉलीवुड मूवी में दिखाई गई फ्लाइंग कार के लोग फैन थे।फिल्म में दिखाया गया कि इंटेलीजेंस के लोग लाल रंग की उड़ने वाली कॉर्वेट कार का इस्तेमाल करते हैं, जो उड़ने के साथ-साथ कई तरह के हथियारों से लैस रहती है। इस कार की खासियत है कि ये आग भी उगलती है।




आपने हॉलीवुड की ट्रांसफॉमर्स मूवी की ट्रांसफॉर्मिंग कार तो देखी ही होगी, जी हां हम उस ही कार की बात कर रहे हैं जो चार पहियों पर चलते-चलते अचानक रोबोट की तरह दो पैरों पर खड़े होकर दौैड़ना शुरू कर देती है। ऐसी है कार है 'Transformers Transforming Car'। यह कार खासकर बच्चों को पसंद है।










लगभग 30-40 साल पहले ये सुपर कार केवल फिक्शन फिल्मों में दिखाई जाती थी। उस समय लोगों को इन्हें देखकर हंसी आती थी। वे यही मानकर चलते थे कि ऐसा असलियत में कभी नहीं हो सकता। लेकिन साइंस ने रियल लाइफ में उड़ने वाली कार लाकर ये साबित कर दिया कि सुपर हीरोज द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कारों को असली में बनाया जा सकता है।







ऐसे ही गोले और आग दागने वाली कार भी है जो दुश्मनों का सामना करने के लिए हथियारों से लैस है। सिर्फ इतना ही नहीं यह बुलटप्रूफ और सुपरफास्ट कारों में से एक है। ऐसी ही कार बैटमैन मूवी मे देखी जा सकती है जिसे फिल्म का हीरो इस्तेमाल करता है। इस कार में बैटमैन की जरूरत की हर चीज रहती है। इसकी खासियत है कि ये कन्वर्ट होकर बाइक में भी तब्दील हो सकती है।

 



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न लाल किला बिका है, न ही बिकेगा ताज, अफवाहों पर न दें ध्यान

न लाल किला बिका है, न ही बिकेगा ताज, अफवाहों पर न दें ध्यान



बीते शनिवार को इस खबर के आने के थोड़ी देर बाद ही तृणमूल कांग्रेस पार्टी के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कह दिया लाल किले को प्राइवेट हाथों में बेचा जाना ठीक नहीं है. लेकिन कम लोगों को पता है डेरेक ओ ब्रायन ने शुरुआती चरण में एडॉप्ट अ हेरिटेज स्कीम की तारीफ की थी. पिछले साल ट्रांसपोर्ट, टूरिज्म और कल्चर पर बनी स्टैंडिंग कमेटी के हेड के तौर पर उन्होंने कहा था ये सरकार का स्वागत योग्य कदम है. सिर्फ इतना ही नहीं कमेटी की रिपोर्ट नंबर 59 में ये भी लिखा था कि सरकार को कॉरपोरेट हाउसेज पर दबाव डालना चाहिए कि वो किसी राष्ट्रीय धरोहर को जरूर गोद लें. लेकिन अब डेरेक ओ ब्रायन कह रहे हैं लाक किले को ‘बेचा’ जाना गलत है. और ये बेचा जाना वही है जिसकी उन्होंने वकालत की थी. मजेदार ये है कि जिस स्कीम की तब डेरेक ने तारीफ की थी उसमें कोई भी परिवर्तन सरकार द्वारा नहीं किया गया है.









करीब 8 महीने पहले केंद्र की बीजेपी सरकार द्वारा एक स्कीम लॉन्च की गई जिसका नाम था 'अडॉप्ट अ हेरिटेज' स्कीम. इस स्कीम के तहत देशभर के 100 ऐसे ऐतिहासिक स्थानों को चिह्नित किया गया जिसे किसी के द्वारा रखरखाव के लिए अडॉप्ट किया जाए. इस प्रक्रिया में कोई भी शरीक हो सकता है. इसके लिए सरकार की तरफ से ‘मॉन्यूमेंट मित्र’ का नाम लिया गया. इस लिस्ट में न केवल लाल किला और ताज महल बल्कि फतेहपुर सीकरी आगरा और कोणार्क का सूर्य मंदिर जैसे न जाने कितने धरोहर शामिल हैं.








लाल किले के बिकने की खबर पर हो हल्ला मचने के बाद पर्यटन मंत्री महेश शर्मा ने स्पष्ट बयान दिया, ‘मुझे नहीं पता ये आंकड़ा कहां से आया, क्योंकि पूरे समझौते में पैसों की कोई बात है ही नहीं. 25 करोड़ तो दूर की बात है, 25 रुपये क्या इसमें 5 रुपये तक की भी बात नहीं है. न कंपनी सरकार को पैसे देगी न ही सरकार कंपनी को कुछ दे रही है. जैसे पहले पुरातत्व विभाग टिकट देता था व्यवस्था वैसी ही रहेगी और बस पर्यटकों के लिए सुविधाएं बढ़ जाएंगी.’







पर्यटन मंत्रालय की तरफ से मीडिया में चल रही खबरों पर विज्ञप्ति भी जारी की गई. उसमें लिखा गया कि जो एमओयू साइन हुआ वो सिर्फ विकास कार्यों, लाल किले के इर्द गिर्द सुविधाएं बढ़ाने के लिए हुआ है. इसमें मॉन्यूमेंट के हैंड ओवर जैसी कोई बात ही नहीं है.

संभव है कि सरकारी तंत्र की तरफ से कुछ बातें इसके लिए गढ़ी जा रही हों लेकिन जब हमने इसके एडॉप्ट ए हेरिटेज स्कीम की वेबसाइट खंगाली तो वहां पर लीज पर देने या बेचने जैसी कोई बात सामने नहीं आई. इसके लिए इस स्कीम की गाइडलाइंस देखी जा सकती हैं. इसके भीतर सारे प्रावधान रखरखाव से संबंधित ही हैं. हां कंपनी को अपने प्रचार के लिए अपने ऐड लगाने की अनुमति जरूर नियमों में वर्णित है.







इस खबर के प्रकाशित होने के साथ ही ऐसा प्रदर्शित किया गया कि देश में ऐसा पहली बार हो रहा है और लोकतांत्रिक मूल्यों के किले ढहने शुरू हो गए. लेकिन ऐसा नहीं है कि इस तरह की कोई स्कीम पहली बार मोदी सरकार में ही आई है.


वेबसाइट स्क्रॉल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक 2007 में महाराष्ट्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एडॉप्ट अ मॉन्यूमेंट स्कीम के तहत प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर की कंपनियों को पांच साल के ऐतिहासिक धरोहरों को गोद लेने की स्कीम शुरू की थी. बाद में 2014 में जब पृथ्वीराज चव्हाण राज्य के मुख्यमंत्री थे तब इस स्कीम को बढ़ाकर कांग्रेस की ही सरकार ने दस साल के लिए कर दिया था. इसका कारण था कि कंपनियों की तरफ से ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया गया.













इस स्कीम के तहत महाराष्ट्र के ओस्मानाबाद जिले के नालदुर्ग किले को यूनी मल्टीकॉन्स कंपनी ने अडॉप्ट किया था. इसके एवज में कंपनी को सरकार की तरफ से इस किले के नजदीक एक जमीन का एक टुकड़ा भी उपलब्ध कराया गया था जिस पर वह सैलानियों के रेजॉर्ट तैयार कर सके. कंपनी ने किले को बेहतर बनाने के लिए काम भी किए हैं जिनमें किले की सफाई, लॉन और सड़कों के काम शामिल हैं.





लेकिन अगर आप इस वक्त कांग्रेस के विरोध को सुनें तो वो बिल्कुल उल्टे प्रतीत होते हैं. केंद्र सरकार पर देश की धरोहर गिरवी रखने तक के आरोप लगा रहे हैं. विपक्ष का सरकार को आड़े हाथों लेना लोकतंत्र की सांसें चलते रहने के लिए बेहद जरूरी है लेकिन ऐसी आलोचना! जहां केंद्र में आपकी सरकार रहते आपकी ही पार्टी के एक मुख्यमंत्री ने वर्षों तक ये योजना चलाई?


यही नहीं 27 फरवरी 2014 को जब यूपीए सरकार के आखिरी दिन चल रहे थे तब कॉरपोरेट मामलों के मंत्री सचिन पायलट के मंत्रालय से जारी विज्ञप्ति को देखिए. इस विज्ञप्ति में कंपनियों के कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिटी कार्यक्रम के नियम तय किए गए हैं. इस विज्ञप्ति की हेडिंग में यह भी लिखा गया है कि ये काफी मशक्कत के बाद तैयार किया गया है. क्या इसके नियम नंबर (e) में राष्ट्रीय धरोहरों के जीर्णोद्धार और रखरखाव की बात नहीं है?











और जब ऐसा है तो कांग्रेस और डेरेक ओ ब्रायन जैसे नेता किसको बरगलाना चाहते हैं? क्या ये लोग सोशल मीडिया एक्टिविस्ट हैं? क्या अगर 2014 में एनडीए की बजाए एक बार फिर यूपीए की ही सरकार होती तो क्या सीएसआर नियम लागू नहीं होते? और क्यों न होते उनकी ही पार्टी के शासन वाले एक राज्य में आखिर ये स्कीम 7 सालों से चल रही थी.

यही नहीं यूपीए सरकार के दौरान ही 2013 में ओएनजीसी ने ताज महल को गोद लिया था. इसके अलावा ओएनजीसी द्वारा अजंता और एलोरा, हैदराबाद का गोलकोंडा किला, तमिलनाडु का महाबलिपुरम और सबसे अहम दिल्ली का लाल किला गोद लेने की योजना थी. जी हां, दिल्ली का लाल किला जिस पर फिलवक्त कांग्रेस पार्टी बेहद दुखी है.






दरअसल राष्ट्रीय धरोहरों के संरक्षण और रखरखाव में प्राइवेट प्लेयर्स और पब्लिक सेक्टर की कंपनियों के लिए दरवाजे खुलने का मामला 1996 में बनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से शुरू होता है. जब कल्चर मिनिस्ट्री नेशनल कल्चरल फंड की स्थापना की थी. इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय धरोहरों की देखभाल के लिए पीपीपी मॉडल स्थापित करने का था. इसके लिए लिए चैरिटेबल एंडाउमेंट्स एक्ट, 1890 के तहत कंपनियों को कर में छूट देने की बात शामिल की गई.

इस बात को 22 साल बीत गए इस बीच न एनडीए और न ही यूपीए दोनों को ही इससे कोई परेशानी नहीं रही. 10 साल के यूपीए सरकार के दौरान सरकार और प्राइवेट शक्तियों के बीच कई एमओयू साइन हुए लेकिन कभी कोई हल्ला नहीं मचा.


 



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धोनी आखिर क्यों हैं क्रिकेट के सुपर कैप्टन

धोनी आखिर क्यों हैं क्रिकेट के सुपर कैप्टन



'अनहोनी को होनी कर दे जब खेल रहा हो धोनी।' यह जुमला अब इतनी बार सच साबित हुआ है कि अगर एमएसडी क्रीज पर हो तो हारने का तो सवाल ही नहीं होता। टीम इंडिया के पूर्व कप्तान महेंद्रसिंह धोनी निर्विवाद तौर पर भारत के सर्वश्रेष्ठ मैच फिनिशर में सबसे ऊपर खड़े नजर आते हैं।








इस बार आईपीएल के 11वें सीजन में 'माही फिर से मार रहा है' और इस कदर मार रहा है कि सामने वाली टीम के 200 रन भी कम काम पड़ रहे हैं।







अपने चिरपरिचित अंदाज में जब धोनी फिनिशिंग सिक्स लगाते हैं तो करोड़ों दिलों में उत्साह अपने चरम पर होता है, आप किसी भी टीम के समर्थक हो सकते हैं, लेकिन धोनी को धमाल मचाते देखने ही कुछ और है।






जब वे गगनचुंबी छक्के लगाते हैं तो आप खुद को उनके साथ जोड़ लेते हैं। छक्का लगाकर जीतना जहां धोनी की आदत बन चुकी है, वहीं धोनी भक्तों को भी इससे कम कुछ मजूंर नहीं।






चेन्नई सुपरकिंग्स की पीली जर्सी में चमकते एमएस धोनी जब खेलने उतरते हैं तो सामने कोई भी टीम हो, समर्थन धोनी को ही मिलता लगता है, मुंबई में पहले मैच में ही जब धोनी खेलने उतरे तो पूरे स्टेडियम में एक ही नाम गूंज रहा था- धोनी, धोनी, धोनी। और क्यों न गूंजे ये वे कप्तान हैं जिन्होंने भारतीय टीम के वे ख़्वाब सच कर दिखाए हैं, जो क्रिकेट के भगवान भी नहीं कर सके थे।











इसी शख्स ने सचिन तेंदुलकर को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में टीम इंडिया के कंधो पर बैठकर दुनिया के सामने क्रिकेट के महाकुंभ का खिताब जीत तिरंगा लहराने का 'हक' दिया था।







और जब स्थिति उनके मुताबिक़ नहीं रही तो उन्होंने बिना कुछ कहे-सुने कप्तानी को कह दिया गुडबॉय, कैप्टन कूल की इसी चौंकाने वाली अदा पर भी लाखों फ़िदा हैं। धोनी ने हमेशा सही समय पर सही काम कर दिखाया। उनके निर्णय क्रिकेट के बड़े-बड़े पंडितों के लिए बाउंसर रहे और उनके आलोचकों को हमेशा उन्होंने अपने बल्ले या सुपर कूल स्माइल जवाब देने वाले ने अपनी मर्जी से कप्तानी को राइट टाइम डिसीजन लेकर विदा कह दिया।










वैसे अधिकतर क्रिकेट कप्तान अपनी टीमों से लगभग हकाले गए हैं, वहीं धोनी के टेस्ट टीम से लिए संन्यास जैसे निर्णय अक्सर चौंकाने वाले ही रहे है। कुछ उन्हें किस्मत का धनी मानते हैं तो कुछ उन्हें टीम इंडिया का लकी चार्म मानते हैं और क्यों न हो रांची के इस साधारण से छोकरे ने अपनी काबिलियत से दो बार क्रिकेट की दुनिया पर फतह हासिल की है।







 हां, पिछले सीजन में पुणे से खेलते हुए उनका चिरपरिचित अंदाज नदारद रहा और टीम मैनेजमेंट और उनके मनमुटाव की खबरें भी आती रहीं, पर उन्होंने कभी खुद इस मामले पर कुछ नहीं कहा। उनका कूल अंदाज हर समय उनके साथ रहा और सबसे बड़ी बात अपने आलोचकों को अपने सुपर परफॉर्मेंस से लगातार चुप कराने वाला माही अभी भी मार रहा है वो भी जमकर।

 




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कलियुग को लेकर श्रीकृष्ण ने की थीं ये चौंकाने वाली भविष्यवाणियां!

कलियुग को लेकर श्रीकृष्ण ने की थीं ये चौंकाने वाली भविष्यवाणियां!



कई युगों से संस्कृत में लिखा गया यह धार्मिक ग्रन्थ मानवता का मार्गदर्शन करता आया है. धर्म क्या है, मोक्ष क्या है? क्या सही है क्या गलत है, इस धर्मग्रन्थ में सारे सवालों के जवाब है. श्रीमद्भागवत गीता को भगवान का गीत भी कहा जाता है. 







कहा जाता है, जब अर्जुन अपने रक्त संबंधियों को मारने को लेकर विचलित थे और उनके सामने एक बड़ा धर्मसंकट खड़ा हो गया था, तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मार्गदर्शन किया. भाग्वद्गीता में अर्जुन और श्रीकृष्ण के इसी संवाद का वर्णन है.






इस धर्मग्रन्थ के अंतिम अध्याय में कलियुग को लेकर कुछ भविष्यवाणियां भी की गई हैं.





हालांकि ये भविष्यवाणियां श्रीकृष्ण द्वारा 5000 वर्षों पहले की गई थीं लेकिन आज ये सारी भविष्यवाणियां पूरी तरह सच साबित हो रही हैं. इतने वर्षों पहले लिखे ग्रन्थ में वर्तमान के बारे में जो भी बातें कही गई हैं, बिल्कुल सटीक बैठती हैं.





इसमें धरती के अंत को लेकर भी कई चौंकाने वाली भविष्यवाणियां हैं. आखिरी की स्लाइड्स में पढ़ें धरती के अंत के रहस्य...










श्रीमद् भागवतम 12.2.1: कलियुग में धर्म, सच्चाई, स्वच्छता, सहिष्णुता, दया, जीवनकाल, शारीरिक बल और याद्दाश्त सब कुछ घटता चला जाएगा.






श्रीमद् भागवतम 12.2.2कलियुग में मनुष्य का केवल उसकी दौलत के आधार पर मूल्यांकन किया जाएगा. कानून और न्याय केवल किसी की शक्ति को देखते हुए लागू किया जाएगा.









श्रीमद् भागवतम 12.2.3पुरुष और स्त्रियां केवल बाहरी आकर्षण की वजह से साथ रहना शुरू कर देंगे. बिजनेस में सफलता धोखे और बेईमानी पर आधारित हो जाएगी. 






 श्रीमद् भागवतम 12.2.4-केवल बाहरी प्रतीकों से व्यक्तियों की आध्यात्मिकता सुनिश्चित की जाएगी. लोग एक आध्यात्मिक व्यवस्था से दूसरी आध्यात्मिक व्यवस्था को बदलते रहेंगे. एक शख्स की संपत्ति और प्रतिष्ठा पर सवाल उठाए जाएंगे अगर उसकी कमाई अच्छा नहीं होगी. जो शख्स शब्दों का खेल खेलने में कुशल होंगे, ऐसे लोगों का बोलबाला रहेगा. ऐसे ही लोगों को कलियुग में विद्वान समझा जाएगा.
 



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