नीति आयोग का 2018 में 'नए भारत' को हकीकत बनाने की ओर बढ़ने पर होगा जोर
नीति आयोग के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2022 तक 'नया भारत' बनाने के सपने को हकीकत बनाना 2018 में चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। अगले वर्ष नीति आयोग का जोर रोजगार, कृषि, कुपोषण और उच्च शिक्षा पर भी रहेगा। आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का कहना है कि उन्होंने विभिन्न पक्षों से मुलाकात की है और जल्दी ही नया भारत, 2022 के दृष्टिकोण पत्र को अंतिम रूप देंगे।
इसे भी पढ़ें :- 25 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है क्रिसमस
कुमार ने कहा, 'अगले वर्ष हमारा (नीति आयोग) जोर कृषि रुपांतरण, कुपोषण, उच्च शिक्षा और रोजगार सृजन पर होगा। हम अब प्रधानमंत्री के 2022 तक नए भारत के आह्वान को आकार देने की दिशा में काम कर रहे हैं।हम जल्दी ही नया इंडिया 2022 दृष्टिकोण दस्तावेज को अंतिम रूप देंगे और इस कार्य के पूरा होने के बाद हम 15 साल के दृष्टिकोण पत्र पर काम करेंगे।
इससे पहले, आयोग ने तीन साल का कार्य अजेंडा, 7 साल की मध्य अवधि रणनीति दस्तावेज और 15 साल का दृष्टिकोण दस्तावेज लाने की योजना बनाई थी। उन्होंने कहा, 'आयोग सहयोगपूर्ण संघवाद और प्रतिस्पर्धी संघवाद के अपने दोहरे कार्य पर गौर करना जारी रखेगा और इस संदर्भ में मैं पहले ही 11 राज्यों की यात्रा कर चुका हूं।
मैं अगले साल अन्य राज्यों में जाऊंगा ताकि वे गंभीरता से विचार कर सके कि केंद्र में नीति आयोग उनके लिए ही काम कर रहा है और हम साथ मिलकर राज्य केंद्रित विकास योजना तैयार कर सके।'
अर्थव्यवस्था के बारे में कुमार ने कहा कि निजी पूंजी व्यय बढ़ रहा है और हम जल्दी ही तीव्र वृद्धि और गुणवत्तापूर्ण रोजगार सृजन को देखेंगे। आर्थिक वृद्धि के बारे में नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा, 'अगले 12 महीने में 2018-19 की तीसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 7.5 प्रतिशत और उससे ऊपर रहेगी। वहीं अगले दो साल में हमारी आर्थिक वृद्धि दर 8 प्रतिशत होगी। उन्होंने अगले पांच साल में दोहरे अंक में आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने की बात कही जिसका आधार असंगठित क्षेत्र के संगठित क्षेत्र में आने, व्यापार सुगमता और निवेश नियमों का सरलीकरण है।
नीति आयोग की प्राथमिकता के बारे में उन्होंने कहा कि आयोग का जोर अगले साल देश के निर्यात को गति देने पर होगा क्योंकि बेहतर गुणवत्ता वाले रोजगार सृजन में इसकी अहम भूमिका है। गुजरते साल को देखा जाए तो आयोग के पहले उपाध्यक्ष अरविंद पनगढिया ने निजी कारणों से पद से इस्तीफा दिया और उनकी जगह कुमार ने ली। वर्ष 2017 आयोग के लिए उतार-चढ़ाव भरा भी रहा।
आयोग के सदस्य बिबेक देबराय ने कृषि आय को कर के दायरे में लाने की वकालत कर विवाद पैदा किया। आयोग ने तुरंत देबराय की टिप्पणी से स्वयं को अलग किया। आयोग ने कहा कि देबराय की यह व्यक्तिगत राय है। वर्ष के दौरान नीति आयोग को कारोबार सुगमता पर एक सर्वे को लेकर भी आलोचना झेलनी पड़ी। इसमें पूर्व अनुमान के विपरीत कहा गया था कि देश में कारोबार स्थापित करने में लंबा समय लगता है।
इसे भी पढ़ें :- इस शख्स को मगरमच्छ के सामने कलाकारी दिखाना पड़ा महंगा, हाथ को जबड़े में दबाकर झकझोरा, फिर किए दो टुकड़े
यह सर्वे आयोग और आईडीएफसी संस्थान ने किया। इसमें कहा गया कि देश में व्यापार स्थापित करने में औसतन 118 दिन का समय लगता है। यह सर्वे विश्वबैंक की रिपोर्ट से बिल्कुल अलग था।
सर्वे में कहा गया है कि 2016 में भारत में व्यापार स्थापित करने में केवल 26 दिन का समय लगता है। रिपोर्ट और रणनीति को देखा जाए तो वर्ष 2017 में आयोग ने कुपोषण पर राष्ट्रीय रणनीति पेश करने के साथ राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक 2017 का मसौदा, इलेक्ट्रिक वाहन आदि पर रिपोर्ट जारी किए। आयोग ने सार्वजनिक क्षेत्र 23 रुग्न लोक उपक्रमों के निजीकरण की भी सिफारिश की। इस पर निवेश और लोक संपत्ति प्रबंधन विभाग विचार कर रहा है।
इसे भी पढ़ें :- 'टाइगर जिंदा है' का पहला गाना #SwagSeSwagat रिलीज, फिर दिखी सलमान-कैटरीना की सिजलिंग केमिस्ट्री
No comments:
Post a Comment